Saturday, November 28, 2015

आम लड़की

ना मैं रुक्मणि थी 
ना मैं पार्वती 
ना मैं भरोसा चुन सकती थी 
ना ही तपस्या 

राधा हो जाने की 
सारी इच्छाओं को मारकर 
जैसे चुनती है कोई लड़की 
सीता हो जाना 
ठीक उसी तरह 
मैंने भी चुनना चाहा 

मगर मेरा अहम् 
न स्वीकार सका परीक्षाएं 
और उनसे हार जाना तो
बिलकुल भी नही !

मैंने आसान समझा था 
हर रस्म हर रिवाजों से 
बगावत कर
मीरा हो जाना 

मगर मेरे पास नही था 
वो यकीन जो 
जहर के प्यालों को 
अमरित करता 

हर विकल्प को हारकर 
मैं बची हूँ वही आम लड़की 
जिसके हिस्से में दोराहे नही होते 
वह समझोतों की बिसात पर 
अंततः खुद को सिर्फ एक औरत 
साबित कर पाने तक ही समर्पित है 

~ वंदना 




3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, धन्यबाद।

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  2. वंदना जी, नारी की सच्चाई प्रस्तुत करती बहुत सुंदर प्रस्तुति...

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  3. वाह क्‍या बात है। ''कागज मेरा मीत है.., और कलम मेरी सहेली'' दिल को छू जाने वाली पंक्तियां।

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...