Saturday, October 13, 2012

ग़ज़ल


हमें कांश  कोई तुमसे भी प्यारा होता 
जो सिर्फ हमारा और हमारा    होता !

सपनो में भी आता  हकीकत कि तरह 
हमने नींदों में उसको जब पुकारा होता !

न कोई चाँद न जुगनू  कुछ भी न सही ..
महज़ आँखों में  चमकता  एक तारा होता !

झुठलाये हैं सच अपने हिस्से के हमने.. 
किसी पल को  झूठ का भी सहारा होता !

जो गुजरी है वो चेहरे पे कब आ सकी है 
कांश किसी पल ये हौंसला भी हारा होता !

कट गया वक्त जिस अज़ाब के साथ 
न होता अगर ये तो  कैसे गुजारा होता !

समेटीं है ज़द में ये बहती हुई नदियाँ..
क्या करता समन्दर जो न खारा होता !


' वंदना '


5 comments:

  1. बहुत सुन्दर ||
    बधाईयाँ ||

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  2. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है वंदना जी बधाई स्वीकारें

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  3. बहुत सुन्दर गज़ल...
    बढ़िया शेर कहे हैं....

    अनु

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  4. बहुत सुन्दर गजल...बधाई..

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