Monday, September 17, 2012

कमजोर लड़की !


वो चुप्पियों के लिबाज़ वाली..
खुद के ही दायरे में कैद ..
एक कमजोर लड़की 

अपनी ही परिभाषाओं में 
हर वक्त उलझी हुई 

जिसे नही सिखाया सायद 
बचपन ने बेबाक होना 

जिसने खर्च दिए 
दुआओं के सब सिक्के 
हर छोटी बड़ी आरजू के नाम 
मगर नही सीखा जिन्दगी से 
इबादत का सही मतलब 

एक डर न जाने
 क्यूं ...और कब से 
धीरे धीरे पलकर बड़ा 
हो गया .दीमक सा 
उसकी ज़हन कि सीली 
परतों में 

जिसने खा ली है 
उसकी आँखों से 
मस्तियों कि चमक 

जिसने खोकला कर दिया है 
उसके आत्मविश्वास को 


पलकों में कैद है उसके 
डरी ,सहमी सी लहरे 

होठो पर कुछ मूक 
जज्बात ..ढूंढते हैं 
कोई राह उसकी आवाज
 में घुलकर बोल पड़ने को 

उसने खो दिए हैं 
सलीके जीने के 
एक ऐसे डर में जिसकी 
कोई परिभाषा ही नही 

उसे देखा है किसी कि खुशियों में 
बेहद खुश होते हुए ..वो खुशी 
जिसके लिए खर्चे थे उसने 
खुशी खुशी अपनी दुआओं के
सबसे प्यारे और कीमती सिक्के 

देखा है उसकी आँखों में एक 
सुखद अहसास को आज मुस्कुराते हुए
उसकी चुप्पियों को सुकून पाते हुए 

मगर वो ठहरी एक कमजोर लड़की 
नहीं आता उसे कुछ भी जाहिर करना


वंदना 










10 comments:

  1. bahut khubsurati se us ladki ke dil ki baat bayan kar di aapne

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  2. वाह....
    बहुत खूबसूरत....
    अनु

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  3. वाह ! वंदना जी . आज की दुनिया की ये कटु सच्चाई है . पता नहीं बचपन किस डर में बीत रहा है . बहुत खूबसूरत शब्दों में कहा है आपने. कुछ प्रूफ की गलतियां हैं . कृपया फिर से एडिट कर लें

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  4. कमज़ोर लडकी एक सशक्त रचना है (शुद्ध करलें,शुद्ध रूप ये हैं -लिबास वाली ,जिसे नहीं सिखाया शायद ,मगर नहीं ...,डरी सहमीं सी लहरें,होंठों ....,),आम तौर पर नाक का इस्तेमाल करें ,अनुनासिक /अनुस्वार का ध्यान रखें बोले तो बिंदी और चन्द्र बिंदु की आम चूक हो रही है .

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  5. जिसने खर्च दिए
    दुआओं के सब सिक्के
    हर छोटी बड़ी आरजू के नाम
    मगर नही सीखा जिन्दगी से
    इबादत का सही मतलब ...उसकी कमजोरी ही उसकी असली इबादत है

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  6. वाह: बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति.अनु..

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  7. जीवन का सत्य कभी कभी क्या क्या दिखाता है ..
    संवेदनशील रचना ...

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  8. वाह ... बेहतरीन

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  9. shayad mere dil ki baat keh di tumne...could so much relate to it....aur kya kahun :) :)

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...