Wednesday, November 9, 2011

वक्त तो लगा पर ये गुरूर ...जाता रहा




वक्त तो लगा पर ये  गुरूर ...जाता रहा 
अपनी तहरीरों का सब  नूर ...जाता रहा 

इक इक करके यूं टूटे   वो  सारे भरम 
अफ्कारों का भी  अब सुरूर... जाता रहा 

पाकीज़ा* मोहब्बत खजल* होके रह गयी 
कि वो महताब  ही जब दूर ..जाता रहा 

सजा  नादानियों कि  मिल गयी  हमको 
रफाकतों* का भी सब गुरूर ..जाता रहा

छोड़ गये है   वो गमगुसार* भी   अब तो 
शायद यही सोचकर नासूर* ..जाता रहा !

- वंदना 
खजल = शर्मिंदा 
पाकीज़ा = पवित्र
रफाकत = दोस्ती
गमगुसार = हमदर्द
नासूर = जख्म

8 comments:

  1. वक्त तो लगा पर ये गुरूर ...जाता रहा
    अपनी तहरीरों का सब नूर ...जाता रहा....बहुत ही उम्दा ग़ज़ल....

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  2. आज 10 - 11 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


    ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
    ____________________________________

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  3. Lajawab gajal .... Bahutu umda sher hain sabhi ....

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  4. भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  5. chalo acchha hua sambhal gaye...ab main aur meri tanhayi wale halat me jiyenge...na umeed hogi...na tutegi.

    umda gazal.

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  6. वाह..उम्दा ग़ज़ल !!

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  7. गुरुर जाता रहा..बेहतरीन गजल के लिए शुक्रिया.

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  8. A beautiful blog!! congrats!
    to read my Hindi poems kindly visit:
    http://mahanagarmemahakavi.wordpress.com/

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...