Tuesday, October 11, 2011

ग़ज़ल




दिल कि बेखुदी को किसका ख्याल आया 
खिड़की के चाँद में    ये कौन मुस्कुराया..

बे  मांगे मुरादों को   पनाह मिल गयी 
टूटते तारे ने  जब , दुआ में सर उठाया 

कतरा कतरा टूटती बारिशों  कि तरह 
लम्हों कि आरजू ने मुझको आजमाया 

चाँदनी में रास्ता   वो जुगनू भटक गया 
और जलते चिराग ने,अँधेरा गले लगाया

मौजो कि रवानी को किनारा कौन देता 
कागज़ कि नाव को जैसे पानी में बहाया !

- वंदना


2 comments:

  1. लाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  2. बे मांगें मुरादों को पनाह मिल गयी
    टूटते तारे ने जब दुआ में सर उठाया...

    वाह! सुन्दर गज़ल...
    सादर बधाई...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...