Saturday, August 27, 2011

ग़ज़ल --हम रीत पुरानी हो जाएँ




बूँद बूँद में घुलकर हम  भी  बहता पानी हो जाएँ..
जिन्दगी को लिखते लिखते एक कहानी हो जाएँ !


अल्फाज़ दिये मैंने अपनी धड़कन कि तहरीरों को..
तुम लबो से छू लो  तो ये   ग़ज़ल सुहानी हो जाएँ !


मेरी आँखों के दर्पण में   खुद को सवाँरा कीजिये.. 
इन  शर्मीली सी आँखों का  हम भी पानी हो जाएँ !


मुझको साँसे बख्श दो   मैं धड़कन तेरी हो जाऊं..
तुम जो ये सौदा करलो जीने कि असानी  हो जाएँ !


तुम राधा कि  दीवानगी  मैं हूँ   मुरली  कि  तान..
अपनाकर  इस प्रीत को  हम रीत पुरानी हो जाएँ  !!


वंदना

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर आशआर पेश किये हैं आपने इस नज्म में।

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  2. तुम जो ये सौदा कर लो, जीने की आसानी हो जाए....

    व्वाह! बहुत ही उम्दा ग़ज़ल...
    सादर..

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  3. vaah kya baat hai....Bahut sundar gazal.aabhar.

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  4. बहुत खूबसूरत गज़ल्।

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  5. Ji bilkul apna liya....ise nakshe kadam par chal rahe hain :-)

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  6. बहुत सुन्दर प्यारी सी गज़ल...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...