Friday, June 17, 2011

ग़ज़ल ,





तेरे बाद   जिन्दगी में  वो मौसम नहीं आये 
खुलकर रोये तो बहुत लेकिन हंस  नहीं पाये 

मेरे पागलन को सौंप कर विरहा  कि अगन 
तुम ऐसे गये की  कभी लौट कर नहीं आये 

रो रो के मना लेते तुझे अपना बना लेते 
रिश्तो कि गरीबी ने  ये हक़ नही  पाये 

देखा है खुदको हमने मिटते रफ्ता रफ्ता 
हम हार गये खुद से हमसे जीत गए साये 

वो रास्ता कि जिससे  हो लौटना  मुश्किल 
भूल कर भी कभी कोई मेरे यार नहीं  जाये

वंदना 






11 comments:

  1. इस गजल का मैं कायल हो गया ,कथ्य एवम शब्द संयोजन दोनों प्रशंसनीय हैं , बहुत बहुत आदर जी /

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  2. AnonymousJune 17, 2011

    वंदना जी
    इस कविता पर आपकी प्रसंसा करने के लिए शब्द भी नहीं है मेरे पास ....
    आपने तो जन्नत ही लूट ली ....ऐसे ही लिखती रहिये

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  3. रो रो के मना लेते तुझे अपना बना लेते
    रिश्तो कि गरीबी ने ये हक़ नही पाये

    बहुत खूबसूरत गज़ल

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  5. बहुत सुन्दर शब्दों से अपने भाव को बाँधा है ..

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  6. खूबसूरत , नज्म सी लगती ये ग़ज़ल

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  7. बहुत सुन्दर ग़ज़ल| धन्यवाद|

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  9. ग़ज़ल बहुत सुंदर है.

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  10. अति सुन्दर

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